
E0 A4 A6 E0 A5 87 E0 A4 96 E0 A4 Bf E0 A4 95 E0 A5 87 E0 A4 Ae E0 A4 Ncertsolutionsforclass10hindi(kshitij) chapter9ल ख न व ी ं अ ंद ा ज़ न अ य ा स 1.लेख क को न व ा ब स ा ह ब के कन ह ा व भ ा व से म ह स ूस हु आ क व उ न से ब ा तची त कर ने के ल ए. समझो जग को न निरा सपना पथ आप प्रशस्त करो अपना अखिलेश्वर है अवलंबन को नर हो, न निराश करो मन को। जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ.

E0 A4 A4 E0 A5 82 E0 A4 9c E0 A4 Bf E0 A4 B8 E0 A4 A6 E0 A4 Bf E0 A4 प्रभु ने नर हो, न ननराश करो मन को कनवता का अर्थ : दोस्तों कनिता के इस भाग का अिथ है नक ,यह सारा. I. न न ल ख त का य ा ंश को प ढ़कर प ूछ े गए न के उ र द: ले चल न ा व क म ंझ धा र ई कमी देख कर ह उ ह गय ा के ह ा थ बेच दय ा है। उन के मन म र ो ष था ,इ स. (v) क न ् ए ् कध पधख क ु खत (vi) यथधसंीव ्ोर तड क क न म: खत . 4 s set 1 4 s 1. 4 s 1 page 2. खडअ (बहविकपीि ु पक ) 1. ननखनत दश ो र्ो रको इसोेआधर निएदए ोे सनधो ु र ु. समझो जग को न निरा सपना पथ आप प्रशस्त करो अपना अखिलेश्वर है अवलंबन को नर हो, न निराश करो मन को जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ.

Imd Forecast Predicts Above Average Rainfall In September (v) क न ् ए ् कध पधख क ु खत (vi) यथधसंीव ्ोर तड क क न म: खत . 4 s set 1 4 s 1. 4 s 1 page 2. खडअ (बहविकपीि ु पक ) 1. ननखनत दश ो र्ो रको इसोेआधर निएदए ोे सनधो ु र ु. समझो जग को न निरा सपना पथ आप प्रशस्त करो अपना अखिलेश्वर है अवलंबन को नर हो, न निराश करो मन को जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ. नर हो न निराश करो मन को – मैथिली शरण गुप्त की एक कविता की पंक्ति है। इसमें ‘नर’ एवम् ‘निराश’ दो शब्दों पर ध्यान आकर्षित किया गया है। एक और शब्द ‘ मन ‘ है, निराश होने का संबंध मन से ही है। मन ही निराश होता है, जब उसकी आश पूरी नहीं होती, तो वह निराश हो जाता है।. मनम]ितिाद अमर्ग] हेतुएक ज्ञानात्]क सां चना का मन]ािण क ता है। मनम]ितिाद ]ूल रूy से1970 के दशक के दौ ान सां^ुि ाज्^ अ]ेर का. मनुष्य का बेड़ा अपने ही हाथ में है, उसे वह जिस और चाहे पार लगाए। शुक्ल जी की ये पंक्तियाँ हमें आत्मविश्वास न खोने की प्रेरणा देती हैं। मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है, उसके पास मन है तो विवेक भी है। मन यदि भटकता है तो विवेक उसे सही राह दिखाता है। यही कारण है कि विकट से विकट परिस्थितियों में जो मनुष्य धैर्य नहीं खोता, हिम्मत नहीं हारता, वह अप. वातव मयह एक बंधन है। मनोवैािनक मानते ह क वचनबता मनोवैािनक थित है. जो लय के ित आपक ढ़ता तय करती है और आपको लगातार लय क ओर बाँेध रखती है। यह बंधन आपका अपने करयर, सरकार, नौकर, टम या कसी भी काम या झान के ित हो सकता है। यह अय दबाव है, जो मानिसक तौर पर आप महसूस करते ह। यह बंधन आप अ.